सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता अच्छा बुरा बर्ताव करता

मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता अच्छा बुरा बर्ताव करता म नुष्य हमेशा भाव में रहता  मनुष्य अभाव में आकर स्वभाव बदलता  मनुष्य प्रभाव से प्रभावित होता  अच्छा बुरा बर्ताव करता दुर्भाव पालता मनुष्य दुर्भाव से सबका अहित कर देता  मनुष्य किसी न किसी प्रभाव से अपना स्वभाव हावभाव में बदलाव करता!  मनुष्य में मनुष्यता का  सर्वोत्तम भाव अबतक नहीं जगा  मनुष्य ने मनुष्य में जाति धर्म की  दीवार खड़ा करके स्वयं को ठगा  मनुष्य को मनुष्य बनाने का  प्रयास ‘मनुर्भवः’ बहुत किया गया  किन्तु मनुष्य ने मनुष्य बनने का  गुण अबतक नहीं जुटा पाया!   मनुस्मृति के  ‘अतिथि देवो भवः’ का प्रभाव ये कि सनातनी अतिथि का  आवभगत करते बड़े ही चाव से  ‘सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्  न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्’ के प्रभाव से  सनातनी मनुष्य सत्य बोलता  पर असत्य छिपाता कोर्ट में झूठी गवाही देता!  ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ का  प्रभाव ऐसा है कि सनातन धर्म में  पराई नारी माँ बहन बेटी समझी जाती माता  फिर ...
हाल की पोस्ट

बसंत पंचमी का महत्व इन हिंदी

बसंत पंचमी का महत्व इन हिंदी ब संत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इसे सरस्वती पूजा के रूप में भी जाना जाता है। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है। यह ऋतु प्रकृति के नवजीवन और उल्लास का प्रतीक है। खेतों में सरसों के पीले फूल, आम के पेड़ों पर बौर और मधुर हवाएं बसंत के आगमन की सूचना देती हैं। सरस्वती पूजा के दिन विद्यार्थी, कलाकार और बुद्धिजीवी मां सरस्वती की आराधना करते हैं। माना जाता है कि मां सरस्वती की कृपा से ही ज्ञान, विवेक और बुद्धि की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और वाद्ययंत्रों की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को पीले फूल, माला और वस्त्रों से सजाया जाता है। पीला रंग बसंत ऋतु और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस दिन पीले वस्त्र पहनने और पीले व्यंजन बनाने की परंपरा है। बसंत पंचमी का महत्व केव...

प्रयाग कुंभ मेला 2025: विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम

प्रयाग कुंभ मेला 2025: विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम स न 2025 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला एक बार फिर विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। यह मेला न केवल भारत बल्कि दुनिया के विभिन्न कोनों से आए लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और संस्कृति का एक विशाल संगम रहा। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर लगने वाला यह मेला हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है। कुंभ मेला का इतिहास बेहद प्राचीन है। मान्यता है कि देवता और दानवों के बीच अमृत के कलश को पाने के लिए जो युद्ध हुआ था, उस दौरान चारों दिशाओं में अमृत की कुछ बूंदें गिर गई थीं। इन बूंदों के गिरने के स्थानों पर ही कुंभ मेला लगता है। प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन ये चार स्थान हैं जहां कुंभ मेला आयोजित होता है। 2025 का कुंभ मेला क्यों था खास? सन 2025 का कुंभ मेला कई मायनों में खास था। इस मेले में लाखों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और संगम में डुबकी लगाई। मेले के दौरान कई धार्मिक आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और भजन-कीर्तन हुए।  श्रद्धालुओं ने विभिन्न संतों और महात्माओं के दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया। कुंभ मेले का महत्व क...

एक चालाक लोमड़ी की कहानी

एक चालाक लोमड़ी की कहानी ए क बार की बात है, एक जंगल में एक बहुत चालाक लोमड़ी रहती थी। उसका नाम था शीला। शीला बहुत ही चालाक थी और वह हमेशा कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करती थी। एक दिन, शीला को बहुत भूख लगी। वह जंगल में इधर-उधर घूम रही थी कि उसे एक बड़ा सा मुर्गा दिखाई दिया। मुर्गा एक पेड़ पर बैठा हुआ था और गा रहा था। शीला ने सोचा, “यह मुर्गा तो बहुत ही स्वादिष्ट लगेगा।” शीला ने मुर्गे को फंसाने के लिए एक योजना बनाई। वह पेड़ के नीचे जाकर बैठ गई और बोली, “हे मुर्गे, तेरी आवाज सुनकर मैं बहुत खुश हो गई। तेरी आवाज इतनी मधुर है कि मैं तुझे सुनकर मंत्रमुग्ध हो गई हूँ।” मुर्गा शीला की बातों में आ गया और बोला, “धन्यवाद।” शीला ने फिर कहा, “मुझे तेरी आवाज और भी अच्छी लगती अगर तू थोड़ा नीचे आकर गाए।” मुर्गा थोड़ा नीचे आ गया। शीला ने फिर कहा, “अगर तू और थोड़ा नीचे आ जाए तो मैं और खुश हो जाऊंगी।” मुर्गा धीरे-धीरे नीचे उतरता गया और जब वह शीला के बहुत करीब पहुंच गया तो शीला ने एक झपट्टा मारा और मुर्गे को पकड़ लिया। शीला मुर्गे को लेकर अपने घर चली गई और उसे खा गई। कहानी का सबक: हमेशा चालाक लोगों से सावध...

भूतिया बगीचा | बच्चों के लिए एक डरावनी कहानी

भूतिया बगीचा | बच्चों के लिए एक डरावनी कहानी ए क छोटा सा गाँव था, जहाँ एक बहुत ही पुराना बगीचा था। लोग कहते थे कि उस बगीचे में रात को भूत रहते हैं। बगीचे के पेड़ इतने ऊँचे थे कि सूरज की रोशनी भी नीचे तक नहीं पहुँच पाती थी। और रात को तो बगीचा और भी डरावना लगता था। एक दिन, दो दोस्त, राहुल और सीता, बगीचे में घूमने गए। राहुल बहुत हिम्मत वाला था, लेकिन सीता थोड़ी डरपोक थी। उन्होंने सुना था कि बगीचे में एक भूतिया कुत्ता रहता है, जिसकी आँखें चमकती हैं। राहुल ने सीता को हिम्मत दी और वे दोनों बगीचे में घूमने लगे। जैसे ही वे बगीचे के अंदर गए, हवा चलने लगी और पेड़ों की डालियाँ हिलने लगीं। सीता डर के मारे राहुल के हाथ पकड़ लिए। तभी उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, "कौन है वहाँ?" सीता डर के मारे चिल्ला उठी। राहुल ने उसे शांत किया और कहा, "डरो मत, यह शायद कोई जानवर होगा।" वे धीरे-धीरे आगे बढ़े और उन्हें एक बड़ा सा कुत्ता दिखाई दिया। कुत्ते की आँखें चमक रही थीं, जैसे ही उसने उन्हें देखा वह भौंकने लगा। सीता और राहुल डर के मारे भागने लगे। वे भागते-भागते बगीचे के गेट तक पहुँच गए और बाहर निक...

संस्कार बाजार में नहीं मिलता

कर्म किए जा फल मिलता आज नहीं तो कल मिलता क र्म किए जा फल मिलता आज नहीं तो कल मिलता  शुभ-शुभ करो तो शुभ ही होता बुरे काम का बुरा नतीजा!    संस्कार बाजार में नहीं मिलता  संस्कार माँ पिता गुरु और ग्रंथ से आता तुम्हें किस गुरु ने ये गुर सिखला दिया  कि आते जाते राही को पानी नहीं पिलाना भूखे को भोजन लंगर भंडारा नहीं खिलाना दाम लेकर खान-पान की सामग्री दूषित करना?   आखिर तुम्हारी क्या है मंशा? किसने सिखलाया मानव के साथ करना हिंसा?   आखिर तुम्हारा क्या है मकसद? किस देवदूत ने आदेश दिया फैलाओ दहशत?   तुम आदमी हो कोई पशु तो नहीं हो  तुम राम कृष्ण बुद्ध जिन नबी यीशु को  मानते हो मगर उन्हें जानते ही नहीं हो!   कोई हो आराध्य उनका जीवन रहा है कष्टसाध्य  बगैर कष्ट का कोई महामानव नहीं बनता चाहे तुम जिन्हें मानो उन्हें बदनाम नहीं होने दो!   तुम्हें गर दुख मिला तो उसका तुम ही कारण होगा सत्य की राह में चलोगे तभी दुख का निवारण होगा!   खाली हाथ आए हो और खाली हाथ ही जाना होगा  अगर तुमने बुरा किया तो बुराई का फल पाना होगा!  ...

चौरी चौरा का काला अध्याय

चौरी चौरा का काला अध्याय ए क ऐसा अध्याय जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक अमिट छाप छोड़ गया ।सन् 1922, एक ऐसा समय जब भारत के लोग अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे थे। देश के कोने-कोने में असहयोग आंदोलन की लहर दौड़ रही थी। गांधीजी के नेतृत्व में पूरा देश एकजुट होकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठा रहा था। इसी दौरान, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में एक छोटा सा कस्बा चौरी-चौरा था। यह कस्बा उस समय देश के स्वतंत्रता संग्राम का गवाह बनने जा रहा था, जब यहां एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया।चौरी-चौरा में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हो गई। यह झड़प इतनी बढ़ गई कि आग लग गई और कई पुलिस वाले मारे गए। इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी। अंग्रेजी सरकार ने इस घटना को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए। गांधीजी ने इस घटना को देखते हुए असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गांधीजी का निर्णय गांधीजी ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उन्हें लगा कि आंदोलन हिंसक हो रहा है और यह देश के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के लिए किया जाने वाला संघर्ष अहिंसक तरीके...